मुझे कभी न कभी थोडा - सा पानी अवशय देना !
सीच दो जड़ मे ;
कडी से कडी धूप से भी लड़कर मैं दूगा !!
भृमरो को पीयूष , रगं बिरंगे :
मनमोहक सुगन्नध !फ़ल भी दूगा !!
चाहे तुम खाओ, मित्र को दो ;
तुम अपने दिन खूशी से बिताओ !!
लेकिन मूझे भी चहाँ जीने दो ;
भगवान ने सबको दी है यह धरती !!
मुझे भी इसमे जीने का हक है ;
सीचना अव्शय !!
मुझे कभी न कभी थोडा - सा पानी अवशय देना !!!
पानी देते रहो, ये पेड जरुर बडा होगा।
ReplyDeleteभगवान ने सबको दी है यह धरती !!
ReplyDeleteits true..nice poem..
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteअहिन्दीभाषी क्षेत्र की महिला हिन्दी में ब्लॉगिंग कर रही है।
यह देखकर अच्छा लग रहा है।