Friday, November 4, 2011

दोस्त

नया काम में लगने के वजह से मै समय नहीं दे पा रही हूँ |
जब जब समय मिलेगा मै कोशिश करुगी की  
आप सब से आके मिल जाउगी
मुझे समझने  की कोशिश करे 
मै ब्लॉग  बहुत प्यार करती  हूँ 

Thursday, November 3, 2011

"एक मुक्तक" (विद्या)

एक मुक्तक
बेसबब कोई कभी रोता नही।
नूर आँखों का कोई खोता नहीं।
दीप-बाती का मिलन तो व्यर्थ है,
स्नेह जब तक साथ में होता नहीं।

Saturday, October 22, 2011

"हमें उजाला लाना है" (श्रीमती विद्या)

धरती के कोने-कोने पर, हमें उजाला लाना है।
हमें प्यार का एक दिया, हर घर में आज जलाना है।।

Tuesday, October 4, 2011

आरती में कर्पूर का उपयोग क्यों?




हिंदू धर्म में किए जाने वाले विभिन्न धार्मिक कर्मकांडों तथा पूजन में उपयोग की जाने वाली सामग्री के पीछे सिर्फ धार्मिक कारण ही नहीं है इन सभी के पीछे कहीं न कहीं हमारे ऋषि-मुनियों की वैज्ञानिक सोच भी निहित है।


प्राचीन समय से ही हमारे देश में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में कर्पूर का उपयोग किया जाता है। कर्पूर का सबसे अधिक उपयोग आरती में किया जाता है। प्राचीन काल से ही हमारे देश में देशी घी के दीपक व कर्पूर के देवी-देवताओं की आरती करने की परंपरा चली आ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान आरती करने के प्रसन्न होते हैं व साधक की मनोकामना पूर्ण करते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि कर्पूर जलाने से देवदोष व पितृदोष का शमन होता है। कर्पूर अति सुगंधित पदार्थ होता है। इसके दहन से वातावरण सुगंधित हो जाता है।


वैज्ञानिक शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि इसकी सुगंध से जीवाणु, विषाणु आदि बीमारी फैलाने वाले जीव नष्ट हो जाते हैं जिससे वातावरण शुद्ध हो जाता है तथा बीमारी होने का भय भी नहीं रहता।यही कारण है कि पूजन, आरती आदि धार्मिक कर्मकांडों में कर्पूर का विशेष महत्व बताया गया है। 

Saturday, October 1, 2011

नवरात्रि की शुभकामनायें.

नवरात्रि पूरे भारत मे बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है, यह नौ दिनो तक चलता है। इन नौ दिनो मे हम तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों की पूजा करते है। पहले तीन दिन पार्वती के तीन स्वरुपों(कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन लक्ष्मी माता के स्वरुपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के स्वरुपों की पूजा करते है। ये तीनो देवियां शक्ति, सम्पदा और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है। आइये जाने इन नौ रुपों के बारे कुछ विस्तार से: (साभार साधना पथ पत्रिका)
प्रथम दुर्गा श्री शैलपुत्री
आदिशक्ति श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनके पूजन से मूलाधर चक्र जाग्रत होता है, जिससे साधक को मूलाधार चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
द्वितीय दुर्गा श्री ब्रह्मचारिणी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोप तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इनकी उपासना से मनुष्य के तप, त्याग, वैराग्य सदाचार, संयम की वृद्धि होती है तथा मन कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता।
तृतीय दुर्गा श्री चंद्रघंटा
आदिशक्ति श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
चतुर्थ दुर्गा श्री कूष्मांडा
आदिशक्ति श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा के पूजन से अनाहत चक्र जाग्रति की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
पंचम दुर्गा श्री स्कंदमाता
आदिशक्ति श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा मृत्युलोक में ही साधक को परम शांति और सुख का अनुभव होने लगता है। उसके लिए मोक्ष का द्वार स्वंयमेव सुलभ हो जाता है।
षष्ठम दुर्गा श्री कात्यायनी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। श्री कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
सप्तम दुर्गा श्री कालरात्रि
आदिशक्ति श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। श्री कालरात्रि की साधना से साधक को भानुचक्र जाग्रति की सिद्धियां स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं।
अष्टम दुर्गा श्री महागौरी
आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन और अर्चन किया जाता है। इन दिन साधक को अपना चित्त सोमचक्र (उर्ध्व ललाट) में स्थिर करके साधना करनी चाहिए। श्री महागौरी की आराधना से सोम चक्र जाग्रति की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।
नवम् दुर्गा श्री सिद्धिदात्री
आदिशक्ति श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम् दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त निर्वाण चक्र (मध्य कपाल) में स्थिर कर अपनी साधना करनी चाहिए। श्री सिद्धिदात्री की साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता।
लेकिन आजकल नवरात्रि का आयोजन इतना व्यवसायिक हो गया है कि देख कर दिल दु:खी हो जाता है। नवरात्रि पर गरबा और डान्डिया के नाम पर अंग प्रदर्शन,दिखावा और फूहड़्ता से क्या आपको बुरा नही लगता। तो फिर लिख डालिये अपनी प्रतिक्रिया, जल्द से जल्द, इसी पोस्ट के कमेन्ट में।


Friday, September 30, 2011

नवरात्रि पूजा और व्रत कथा







































































































































यह मै गूगल से सर्च कर के निकाली है मुझे पढ़ कर अच्छा लगा आप को भी अच्छा  लगेगा आशा करती हूँ
सुभ नवरात्रि 








Thursday, September 29, 2011

"गोलू" (विद्या)

गोलू चेन्नई मे बहुत सुन्दर से सजाई जाती है 

गोलू का मतलब  है कि
नया dolls सजाये जाते है यह नवरात्रि  से शुरुवात होती है|
नवरात्रि के नोऊ दिन  सुबह शाम पूजा करनी  पढ़ती  है | 
हर रोज कुछ न कुछ भोग चढ़ाया जाता है |
सुन्डल(ड़ाल) का मतलब है : 
ड़ाल मे नारियल ड़ाल के बनाना पड़ता है बनाके  चढ़ाया जाता है|
और नोऊ दिन शादी सुधा औरत कन्या लड़कियु  को  बुलाकर 
उन्हें पान सुपारी दान मे दिया जाता है 
और जिनके पास सामर्थ्य अच्छा है 
तो वह उन्हें घऱ बुलाकर खाना खिलाया जाता है |
दान मे वस्त्र दान किया जाता है |
नया - २  कपडे  पहन कर फिर हम सब दूसरो  के घऱ जाकर 
पान सुपारी लेते है सुंडल खाते है |
बहुत मजा आता है इन ९ दिनों मे 
बहुत कुछ इतना सुंदर लगता है कि 
जैसे हमें उछलने-कूदने की छूट मिल गई है! 

Wednesday, September 28, 2011

संध्या पूजन का इतना महत्व क्यों है ?



trikal_sandhya_310धर्म की लगभग हरेक प्रसिद्ध पुस्तक में संध्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। संध्या का शाब्दिक अर्थ संधि का समय है यानि जहां दिन का समापन और रात शुरू होती है, उसे संधिकाल कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार दिनमान को तीन भागों में बांटा गया है- प्रात:काल, मध्याह्नï और सायंकाल। संध्या पूजन के लिए प्रात:काल का समय सूर्योदय से छह घटी तक, मध्याह्न 12 घटी तक तथा सायंकाल 20 घटी तक जाना जाता है। एक घटी में 24 मिनट होते हैं। प्रात:काल में तारों के रहते हुए, मध्याह्नï में जब सूर्य मध्य में हो तथा सायं सूर्यास्त के पहले संध्या करना चाहिए।

संध्या पूजन क्यों?

-नियमपूर्वक संध्या करने से पापरहित होकर ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

-रात या दिन में जो विकर्म हो जाते हैं, वे त्रिकाल संध्या से नष्ट हो जाते हैं।

-संध्या नहीं करने वाला मृत्यु के बाद कुत्ते की योनि में जाता है।

-संध्या नहीं करने से पुण्यकर्म का फल नहीं मिलता।

-समय पर की गई संध्या इच्छानुसार फल देती है।-घर में संध्या वंदन से एक, गो

-स्थान में सौ, नदी किनारे लाख तथा शिव के समीप अनंत गुना फल मिलता है।

Saturday, September 24, 2011

"न जाने प्यार है कितना"

अगर कुछ देर हो जाए,
जगाता है मझे आकर।
दिलों का फेर हो जाए,
मनाता है मुझे आकर।।

न जाने कौन सा नाता,
समझ में कुछ नहीं आता।
बहुत एहसान उसका है,
मुझे वो बहुत है भाता।।

बहुत ही दूर है मुझसे
मगर वो पास है कितना।
हमेशा याद आता वो,
न जाने प्यार है कितना।

Thursday, September 22, 2011

प्यार, विश्वास या भरोसा आप कहे

प्यार   ऐसा   वह  रिश्ता  है 
जो  भुलाये से   भी  
हम  भूल  नहीं  सकते  है 
क्या  यह  सच  है ??
सच  है न ||

जितनी   भी  कोशिश  कर  लो 

 मगर  एक वक्त   ऐसा---

वह  हमारे  आखो  के  सामने  आ  ही जाता  है 
क्या  यही  प्यार  की  गहराई  है ||    
  है न ||



Tuesday, September 20, 2011

"कहानी-प्यार की जीत"


कहानी
"प्यार की जीत"
विभा और मनीष दोनों ही एक दूसरे को बहुत चाहते थे। दोंनो ने ही जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही एक दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाईं थीं। लेकिन उस समय आज की तरह का नया जमाना नहीं था। विभा की शादी उसके माता-पिता ने अपनी मर्जी के कर दी और मनीष चाह कर भी कुछ न कह सका।
मनीष की शादी जिस लड़की से की गई थी उसका नाम दिव्या था। उसके 5 भाई और सात साल छोटी एक बहन दीप्ति भी थी। जैसे ही दिव्या जवान हुई तो उसके माता-पिता को उसकी शादी की चिन्ता सताने लगी। मगर दिव्या बहुत ही साधारण रूपरेख की लड़की थी जबकि उसकी छोटी बहन दीप्ति बहुत सुन्दर नैन नक्श वाली थी।
एक लड़का जब दिव्या को पसन्द करने के लिए आया तो उसने दिव्या की छोटी बहन दीप्ति को पसन्द कर लिया और मनीष की भी शादी उसकी मर्जी के खिलाफ उसकी नापसंद की लड़की दिव्या से कर दी गई।
--
विभा अब अपने परिवार की जिम्मेदारियो में व्यस्त हो गई थी और मनीष भी अपनी नापसंद लड़की के साथ जीवन यापन करने लगा था। दोनों के ही परिवार में बच्चे भी हो गये थे परन्तु जीवन साथी से दोनों के ही विचार नहीं मिलते थे। इसलिए आये दिन छोटी-छोटी बातों पर तकरार हो जाता था।
कालान्तर में दोनों ही ने अपने बच्चों की विवाह-शादी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी। अब तो परिवार में अपने-अपने जीवनसाथी से लड़ाई-झगडे के अलावा कोई दूसरा काम रह ही नहीं गया था। इसलिए दोनों ही ने अपने-अपने जीवनसाथी से विधिवत् तलाक ले लिया था।
--
अब नया ज़माना भी आ गया था इंटरनेट का युग था। एक दिन विभा और मनीष दोनों ही इंटरनेट के जरिए फिर एक दूसरे से जुड़ गए थे। एकदूसरे के बिना दोनों को ही चैन नहीं मिलता था। ऐसा लगता था कि दोनों का पूर्वजन्म का कोई रिश्ता रहा होगा। दोनों की घंटों नेट पर बातें होती थी।
अब एक दिन वो समय भी आया कि दोनों फिर से विवाह के सूत्र में बंध गये। दोनों में अब जवानी जैसा रूप और लावण्य नहीं था मगर दिलों में बेइन्तहाशा प्यार था। दोनों ही बहुत खुश थे। क्योंकि असली प्यार तो दिलों में ही निवास करता है और अन्त में सच्चा प्यार जीत जाता है।
अब तो दोनों ने भगवान का शुक्रिया अदा किया और कहा कि हे ऊपरवाले तेरे घर देर हैं मगर अंधेर नहीं है।

Monday, September 19, 2011

मंजिल

यार  का  रुतबा  जिंदगी  में  सब   से  ज्यादा  होता  है,
यार  के  बिना  जीवन  अध  होता  है,
यार  यार  नहीं  खुदा  होता  है,
महसूस  तो  तब  होता  है  जब  वो  जुदा  होता  है


सिर्फ  तुम  ही  हो  ज़िन्दगी  में ,
पर  मैं  तुम्हे  पा   नहीं  सकता,
रहेगा  दुःख  हमेशा  तुम्हे  न  पाने  का ,
पर  अपनी  ख़ुशी  के  लिए  तुम्हे  रुला  नहीं  सकता ...!



मंजिल  उन्ही  को  मिलती  है 
जिनके  सपनो  में  जान  होती  है .
पंख  से  कुछ  नहीं  होता,
हौसलों  से  उड़ान  होती  है.

दोस्त वह है जो दुख और शुख मे हमेशा साथ रहते है 
वही अच्छा दोस्त कहलाता है 

Thursday, September 15, 2011

हकीक़त

हकीक़त  हो  तुम  कैसे  तुझे  सपना  कहूँ ,
तेरे  हर  दर्द  को  अब  मैं  अपना  कहूँ,
सब  कुछ  कुर्बान  है  मेरे  यार  तुझ  पर,
कौन  है  तेरे  सिवा  जिसे  मैं  अपना  कहूँ
अपनों  को  जब  अपने  खो  देते  हैं,
तनहाइयों  में  वोह  रो  देते  हैं,
क्यूँ  इन  पलकों  पर  बैठाते  हैं  लोग  उनको ,
जो  इन  पलकों  को  अक्सर  आंसुओ  से  भिगो  देते  हैं



जब  भी  याद आते हो  मुस्कुरा  लेते  हैं ,
कुछ  पलों  के  लिए  हर  गम  भुला  देते  हैं,
कैसे  भीग  सकते   हैं  आपकी  पलकें,
आपके  हिस्से  के  आंसू  तो  हम  बहा  लेते  हैं...


Wednesday, September 14, 2011

दिवस हमारी हिन्दी का....


आज सितम्बर चौदह है,
ये दिवस हमारी हिन्दी का।
आज बढ़ाना मान हमें है,
भारत माँ की बिन्दी का।।
patti1
मित्रों!
मेरी मातृभाषा तमिल है।
लेकिन मैं अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी को
बहुत प्यार करती हूँ।
मैं जिस भाषा को सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ।
उसके लिए मैं अपने प्राण भी समर्पित करने से
कभी नहीं पीछे हटूँगी।
--
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।।
--
हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
(चित्र-नन्हे सुमन से साभार)


Tuesday, September 13, 2011

उड़ गई है नींद आँखों में

उड़ गई है नींद आँखों की हमारी
बस गई दिल में हमारे छवि तुम्हारी
छोड़ कर हमको अकेला यूँ न जाओ
जानेमन अब तो हमारे पास आओ

इन्तजारी के लम्हे कटते नहीं है
वक्त के घंटे जरा घटते नहीं है
देखती हूँ मैं खुली आँखों में सपने
अब नहीं दिल पर रहा अधिकार अपने

Monday, September 12, 2011

**** डर लगता है***

कितने हैं अरमान हृदय में,
मुझको लेकिन डर लगता है!
क्या तुम भी उन्मुक्त नहीं हो
क्या तुमको भी डर लगता है!!

मेरे साथ सदा यह होता
मेरा समय बहुत नाजुक है।
तुमसे मिलने को मनजाने
मेरा मन कितना उत्सुक है।।

कैसे कहूँ स्वयं अब मैं यह,
मतलब की है दुनिया सारी।
लेकिन प्यार अमर होता है,
जिससे चलती दुनियादारी।।

जहाँ चाह यहै वहाँ राह है,
अड़चन तो आती रहती हैं।
कोमल कलियाँ भी तो हँसकर
काँटों को सहती रहती हैं।।
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