कहानी
"प्यार की जीत"
विभा और मनीष दोनों ही एक दूसरे को बहुत चाहते थे। दोंनो ने ही जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही एक दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाईं थीं। लेकिन उस समय आज की तरह का नया जमाना नहीं था। विभा की शादी उसके माता-पिता ने अपनी मर्जी के कर दी और मनीष चाह कर भी कुछ न कह सका।
मनीष की शादी जिस लड़की से की गई थी उसका नाम दिव्या था। उसके 5 भाई और सात साल छोटी एक बहन दीप्ति भी थी। जैसे ही दिव्या जवान हुई तो उसके माता-पिता को उसकी शादी की चिन्ता सताने लगी। मगर दिव्या बहुत ही साधारण रूपरेख की लड़की थी जबकि उसकी छोटी बहन दीप्ति बहुत सुन्दर नैन नक्श वाली थी।
एक लड़का जब दिव्या को पसन्द करने के लिए आया तो उसने दिव्या की छोटी बहन दीप्ति को पसन्द कर लिया और मनीष की भी शादी उसकी मर्जी के खिलाफ उसकी नापसंद की लड़की दिव्या से कर दी गई।
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विभा अब अपने परिवार की जिम्मेदारियो में व्यस्त हो गई थी और मनीष भी अपनी नापसंद लड़की के साथ जीवन यापन करने लगा था। दोनों के ही परिवार में बच्चे भी हो गये थे परन्तु जीवन साथी से दोनों के ही विचार नहीं मिलते थे। इसलिए आये दिन छोटी-छोटी बातों पर तकरार हो जाता था।
कालान्तर में दोनों ही ने अपने बच्चों की विवाह-शादी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी। अब तो परिवार में अपने-अपने जीवनसाथी से लड़ाई-झगडे के अलावा कोई दूसरा काम रह ही नहीं गया था। इसलिए दोनों ही ने अपने-अपने जीवनसाथी से विधिवत् तलाक ले लिया था।
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अब नया ज़माना भी आ गया था इंटरनेट का युग था। एक दिन विभा और मनीष दोनों ही इंटरनेट के जरिए फिर एक दूसरे से जुड़ गए थे। एक–दूसरे के बिना दोनों को ही चैन नहीं मिलता था। ऐसा लगता था कि दोनों का पूर्वजन्म का कोई रिश्ता रहा होगा। दोनों की घंटों नेट पर बातें होती थी।
अब एक दिन वो समय भी आया कि दोनों फिर से विवाह के सूत्र में बंध गये। दोनों में अब जवानी जैसा रूप और लावण्य नहीं था मगर दिलों में बेइन्तहाशा प्यार था। दोनों ही बहुत खुश थे। क्योंकि असली प्यार तो दिलों में ही निवास करता है और अन्त में सच्चा प्यार जीत जाता है।
अब तो दोनों ने भगवान का शुक्रिया अदा किया और कहा कि हे ऊपरवाले तेरे घर देर हैं मगर अंधेर नहीं है।
आज तो बहुत सुन्दर कथा लगाई है आपने ब्लॉग पर!
ReplyDeleteकथा पढ़कर तो एक सुखद आभास हुआ!
वाकई में सच्चे प्यार की ही जीत होती है!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteसच्चा प्यार बचपन, जवानी या बुढापा नहीं देखता।
ReplyDeleteये था सच्चा प्यार, आखिरकार जीत हुई ना।
आख़िरकार ,सच्चे प्यार की जीत हुई .....सुखद अंत
ReplyDeleteरचना रचना ध्यान से, दिव्या रक्खो दिव्य |
ReplyDeleteअंधेर नहीं पर देर है, सुनना-कहना भव्य ||
सुनना कहना भव्य, जिंदगी अपनी जीते |
पर बच्चों का दोष, व्यर्थ वे आंसू पीते |
कह रविकर दो ध्यान, स्वार्थ से अपने बचना |
बच्चों के अरमान, जगत की प्यारी रचना ||
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसच्चे प्यार की जीत......सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर कथा .....सुन्दर प्रस्तुति ....आभार.
ReplyDeletesarthk lekhan....badhayee swikariye.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति|आभार|
ReplyDeletebahut hi sundar kahani.kahani padhkar wo geet yaad aa gaya "o manmeet hogio pyar ki jeet".aabhar aapka
ReplyDeleteलो जी आपका ब्लाग भी मैंने अपने ब्लाग roll में जोड़ लिया...
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ReplyDeleteसंवेदनाओं से भरी सुन्दर कहानी है ...
ReplyDeletebahut sunder.....
ReplyDeleteInteresting and Spicy Love Story, Pyar Ki Kahaniya and Hindi Story Shared By You Ever. Thank You.
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteआह बढ़िया जी
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