Friday, September 9, 2011

बेवफा न कह देना


झाँक कर देखा इन झरोखों में
था  इन्तजार तेरी आँखों में

हमको तुम बेवफा न कह देना
बन्द अरमान हैं सलाखों में

चाहते हैं कि मिलें अजनबी से राही से
किन्तु रिश्तों की तरफ से हमें मनाही है

दिल के शोले बहुत भड़कते हैं
प्यार में हम बहुत तड़पते हैं

बस यही सोच के धीरज को नहीं खोते हैं
उसके घर देर है अन्धेर नहीं होते हैे

15 comments:

  1. बहुत सुन्दर लिखा है आपने!
    भगवान के घर देर है,
    अन्धेर नहीं है!

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  2. हमको तुम बेवफा न कह देना
    बन्द अरमान हैं सलाखों में

    ....बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।

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  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। धन्यवाद|

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  4. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  5. हमको तुम बेवफा न कह देना
    बन्द अरमान हैं सलाखों में ||
    bahoot khoob :)

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  6. खूबसूरत अभिव्यक्ति.

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  7. बस यही सोच के धीरज को नहीं खोते हैं
    उसके घर देर है अन्धेर नहीं होते है

    Bertreen Panktiyan....

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  8. सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

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  9. क्या कहने, बहुत सुंदर

    हमको तुम बेवफा न कह देना
    बन्द अरमान हैं सलाखों में

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  10. Beautiful as always.
    It is pleasure reading your poems.

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  11. बस यही सोच के धीरज को नहीं खोते हैं
    उसके घर देर है अन्धेर नहीं होते हैे

    सच है
    उसके घर कभी अंधेर नहीं होती

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  12. बहुत सटीक रचना..आभार.

    विशेष आभार.. हमारे ब्लॉग पर आकर हौंसला आफजाई के लिए. धन्यवाद..

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