झाँक कर देखा इन झरोखों में
था इन्तजार तेरी आँखों में
हमको तुम बेवफा न कह देना
बन्द अरमान हैं सलाखों में
चाहते हैं कि मिलें अजनबी से राही से
किन्तु रिश्तों की तरफ से हमें मनाही है
दिल के शोले बहुत भड़कते हैं
प्यार में हम बहुत तड़पते हैं
बस यही सोच के धीरज को नहीं खोते हैं
उसके घर देर है अन्धेर नहीं होते हैे
बहुत सुन्दर लिखा है आपने!
ReplyDeleteभगवान के घर देर है,
अन्धेर नहीं है!
हमको तुम बेवफा न कह देना
ReplyDeleteबन्द अरमान हैं सलाखों में
....बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteखूबसूरत
ReplyDeleteहमको तुम बेवफा न कह देना
ReplyDeleteबन्द अरमान हैं सलाखों में ||
bahoot khoob :)
bahut achchi prastuti.
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबस यही सोच के धीरज को नहीं खोते हैं
ReplyDeleteउसके घर देर है अन्धेर नहीं होते है
Bertreen Panktiyan....
सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteक्या कहने, बहुत सुंदर
ReplyDeleteहमको तुम बेवफा न कह देना
बन्द अरमान हैं सलाखों में
Beautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
bhaut hi sundar....
ReplyDeleteबस यही सोच के धीरज को नहीं खोते हैं
ReplyDeleteउसके घर देर है अन्धेर नहीं होते हैे
सच है
उसके घर कभी अंधेर नहीं होती
बहुत सटीक रचना..आभार.
ReplyDeleteविशेष आभार.. हमारे ब्लॉग पर आकर हौंसला आफजाई के लिए. धन्यवाद..