प्यार करना कितना गुनाह है
हम ही उन्हें याद करते हैं
हम ही उन्हें याद करते हैं
और रोते हैं
वह तो बहुत हँसते रहते है !
हम क्यों परेशान होते रहते है?
सोचती हूँ कई बार
वह तो बहुत हँसते रहते है !
हम क्यों परेशान होते रहते है?
सोचती हूँ कई बार
उन्हें याद न करूँ या न करूँ!
मगर नहीं हो पाता है
मुझ से यह,
क्या करू?
समझ नहीं पाती हूँ! रोती ही रह जाती हूँ!!
क्या करू?
समझ नहीं पाती हूँ! रोती ही रह जाती हूँ!!
मन में उठते तूफान को,
नहीं देख सकता कोई!
वह क्यों नहीं समझ पाता है
आँसुओं की भाषा को,
वह क्यों नहीं समझ पाता है
आँसुओं की भाषा को,
क्यों भुला देता है
विरह-व्यथा और नारी की लाचारी का सुन्दर चित्रण किया है आपने इस रचना में!
ReplyDeleteदिल की गहराइयों में डूबकर लिखी गई,
सुन्दर अभिव्यक्ति को पढ़वाने के लिए आभार!
very nice....
ReplyDeleteaanuonki bhasha samajhne ke liye ek dil ki jarurat hai , sundar bhav achhi lagi rachna
ReplyDeleteगहरे उतरते शब्द
ReplyDeleteविरह का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteदिल से लिखी विरह का सुन्दर चित्रण...
ReplyDeleteवराह के दर्द को बखूबी शब्दों में उतारा है आपने....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर गीत...
ReplyDeleteसादर...
पता नहीं क्यों एक शेर याद आ गया-
ReplyDeleteरोने वाले तुझे रोने का सलीका भी नहीं,
अश्क़ पीने के लिए है कि बहाने के लिए!
...बहुत सुन्दर...!!!
dardedil ki shandar dastan....yah chubhan bhi khas hai,,,har dil ko shayaad iska ehshas hai...lekin us khubsurti ka jisse kiya hai bayan aapne,,kuch aaur hi baat hai,,,lajab hai
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी "दर्द" की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की लगाई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
very nice vidya ji
ReplyDeleteश्रमजीवी महिलाओं को लेकर कानूनी जागरूकता
रहे सब्ज़ाजार,महरे आलमताब भारत वर्ष हमारा
जो ना समझे प्यार तेरा वो तेरा प्यारा कैसे है
ReplyDeleteसुन्दर शब्द