Friday, September 30, 2011

नवरात्रि पूजा और व्रत कथा







































































































































यह मै गूगल से सर्च कर के निकाली है मुझे पढ़ कर अच्छा लगा आप को भी अच्छा  लगेगा आशा करती हूँ
सुभ नवरात्रि 








Thursday, September 29, 2011

"गोलू" (विद्या)

गोलू चेन्नई मे बहुत सुन्दर से सजाई जाती है 

गोलू का मतलब  है कि
नया dolls सजाये जाते है यह नवरात्रि  से शुरुवात होती है|
नवरात्रि के नोऊ दिन  सुबह शाम पूजा करनी  पढ़ती  है | 
हर रोज कुछ न कुछ भोग चढ़ाया जाता है |
सुन्डल(ड़ाल) का मतलब है : 
ड़ाल मे नारियल ड़ाल के बनाना पड़ता है बनाके  चढ़ाया जाता है|
और नोऊ दिन शादी सुधा औरत कन्या लड़कियु  को  बुलाकर 
उन्हें पान सुपारी दान मे दिया जाता है 
और जिनके पास सामर्थ्य अच्छा है 
तो वह उन्हें घऱ बुलाकर खाना खिलाया जाता है |
दान मे वस्त्र दान किया जाता है |
नया - २  कपडे  पहन कर फिर हम सब दूसरो  के घऱ जाकर 
पान सुपारी लेते है सुंडल खाते है |
बहुत मजा आता है इन ९ दिनों मे 
बहुत कुछ इतना सुंदर लगता है कि 
जैसे हमें उछलने-कूदने की छूट मिल गई है! 

Wednesday, September 28, 2011

संध्या पूजन का इतना महत्व क्यों है ?



trikal_sandhya_310धर्म की लगभग हरेक प्रसिद्ध पुस्तक में संध्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। संध्या का शाब्दिक अर्थ संधि का समय है यानि जहां दिन का समापन और रात शुरू होती है, उसे संधिकाल कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार दिनमान को तीन भागों में बांटा गया है- प्रात:काल, मध्याह्नï और सायंकाल। संध्या पूजन के लिए प्रात:काल का समय सूर्योदय से छह घटी तक, मध्याह्न 12 घटी तक तथा सायंकाल 20 घटी तक जाना जाता है। एक घटी में 24 मिनट होते हैं। प्रात:काल में तारों के रहते हुए, मध्याह्नï में जब सूर्य मध्य में हो तथा सायं सूर्यास्त के पहले संध्या करना चाहिए।

संध्या पूजन क्यों?

-नियमपूर्वक संध्या करने से पापरहित होकर ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

-रात या दिन में जो विकर्म हो जाते हैं, वे त्रिकाल संध्या से नष्ट हो जाते हैं।

-संध्या नहीं करने वाला मृत्यु के बाद कुत्ते की योनि में जाता है।

-संध्या नहीं करने से पुण्यकर्म का फल नहीं मिलता।

-समय पर की गई संध्या इच्छानुसार फल देती है।-घर में संध्या वंदन से एक, गो

-स्थान में सौ, नदी किनारे लाख तथा शिव के समीप अनंत गुना फल मिलता है।

Saturday, September 24, 2011

"न जाने प्यार है कितना"

अगर कुछ देर हो जाए,
जगाता है मझे आकर।
दिलों का फेर हो जाए,
मनाता है मुझे आकर।।

न जाने कौन सा नाता,
समझ में कुछ नहीं आता।
बहुत एहसान उसका है,
मुझे वो बहुत है भाता।।

बहुत ही दूर है मुझसे
मगर वो पास है कितना।
हमेशा याद आता वो,
न जाने प्यार है कितना।

Thursday, September 22, 2011

प्यार, विश्वास या भरोसा आप कहे

प्यार   ऐसा   वह  रिश्ता  है 
जो  भुलाये से   भी  
हम  भूल  नहीं  सकते  है 
क्या  यह  सच  है ??
सच  है न ||

जितनी   भी  कोशिश  कर  लो 

 मगर  एक वक्त   ऐसा---

वह  हमारे  आखो  के  सामने  आ  ही जाता  है 
क्या  यही  प्यार  की  गहराई  है ||    
  है न ||



Tuesday, September 20, 2011

"कहानी-प्यार की जीत"


कहानी
"प्यार की जीत"
विभा और मनीष दोनों ही एक दूसरे को बहुत चाहते थे। दोंनो ने ही जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही एक दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाईं थीं। लेकिन उस समय आज की तरह का नया जमाना नहीं था। विभा की शादी उसके माता-पिता ने अपनी मर्जी के कर दी और मनीष चाह कर भी कुछ न कह सका।
मनीष की शादी जिस लड़की से की गई थी उसका नाम दिव्या था। उसके 5 भाई और सात साल छोटी एक बहन दीप्ति भी थी। जैसे ही दिव्या जवान हुई तो उसके माता-पिता को उसकी शादी की चिन्ता सताने लगी। मगर दिव्या बहुत ही साधारण रूपरेख की लड़की थी जबकि उसकी छोटी बहन दीप्ति बहुत सुन्दर नैन नक्श वाली थी।
एक लड़का जब दिव्या को पसन्द करने के लिए आया तो उसने दिव्या की छोटी बहन दीप्ति को पसन्द कर लिया और मनीष की भी शादी उसकी मर्जी के खिलाफ उसकी नापसंद की लड़की दिव्या से कर दी गई।
--
विभा अब अपने परिवार की जिम्मेदारियो में व्यस्त हो गई थी और मनीष भी अपनी नापसंद लड़की के साथ जीवन यापन करने लगा था। दोनों के ही परिवार में बच्चे भी हो गये थे परन्तु जीवन साथी से दोनों के ही विचार नहीं मिलते थे। इसलिए आये दिन छोटी-छोटी बातों पर तकरार हो जाता था।
कालान्तर में दोनों ही ने अपने बच्चों की विवाह-शादी करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी। अब तो परिवार में अपने-अपने जीवनसाथी से लड़ाई-झगडे के अलावा कोई दूसरा काम रह ही नहीं गया था। इसलिए दोनों ही ने अपने-अपने जीवनसाथी से विधिवत् तलाक ले लिया था।
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अब नया ज़माना भी आ गया था इंटरनेट का युग था। एक दिन विभा और मनीष दोनों ही इंटरनेट के जरिए फिर एक दूसरे से जुड़ गए थे। एकदूसरे के बिना दोनों को ही चैन नहीं मिलता था। ऐसा लगता था कि दोनों का पूर्वजन्म का कोई रिश्ता रहा होगा। दोनों की घंटों नेट पर बातें होती थी।
अब एक दिन वो समय भी आया कि दोनों फिर से विवाह के सूत्र में बंध गये। दोनों में अब जवानी जैसा रूप और लावण्य नहीं था मगर दिलों में बेइन्तहाशा प्यार था। दोनों ही बहुत खुश थे। क्योंकि असली प्यार तो दिलों में ही निवास करता है और अन्त में सच्चा प्यार जीत जाता है।
अब तो दोनों ने भगवान का शुक्रिया अदा किया और कहा कि हे ऊपरवाले तेरे घर देर हैं मगर अंधेर नहीं है।

Monday, September 19, 2011

मंजिल

यार  का  रुतबा  जिंदगी  में  सब   से  ज्यादा  होता  है,
यार  के  बिना  जीवन  अध  होता  है,
यार  यार  नहीं  खुदा  होता  है,
महसूस  तो  तब  होता  है  जब  वो  जुदा  होता  है


सिर्फ  तुम  ही  हो  ज़िन्दगी  में ,
पर  मैं  तुम्हे  पा   नहीं  सकता,
रहेगा  दुःख  हमेशा  तुम्हे  न  पाने  का ,
पर  अपनी  ख़ुशी  के  लिए  तुम्हे  रुला  नहीं  सकता ...!



मंजिल  उन्ही  को  मिलती  है 
जिनके  सपनो  में  जान  होती  है .
पंख  से  कुछ  नहीं  होता,
हौसलों  से  उड़ान  होती  है.

दोस्त वह है जो दुख और शुख मे हमेशा साथ रहते है 
वही अच्छा दोस्त कहलाता है 

Thursday, September 15, 2011

हकीक़त

हकीक़त  हो  तुम  कैसे  तुझे  सपना  कहूँ ,
तेरे  हर  दर्द  को  अब  मैं  अपना  कहूँ,
सब  कुछ  कुर्बान  है  मेरे  यार  तुझ  पर,
कौन  है  तेरे  सिवा  जिसे  मैं  अपना  कहूँ
अपनों  को  जब  अपने  खो  देते  हैं,
तनहाइयों  में  वोह  रो  देते  हैं,
क्यूँ  इन  पलकों  पर  बैठाते  हैं  लोग  उनको ,
जो  इन  पलकों  को  अक्सर  आंसुओ  से  भिगो  देते  हैं



जब  भी  याद आते हो  मुस्कुरा  लेते  हैं ,
कुछ  पलों  के  लिए  हर  गम  भुला  देते  हैं,
कैसे  भीग  सकते   हैं  आपकी  पलकें,
आपके  हिस्से  के  आंसू  तो  हम  बहा  लेते  हैं...


Wednesday, September 14, 2011

दिवस हमारी हिन्दी का....


आज सितम्बर चौदह है,
ये दिवस हमारी हिन्दी का।
आज बढ़ाना मान हमें है,
भारत माँ की बिन्दी का।।
patti1
मित्रों!
मेरी मातृभाषा तमिल है।
लेकिन मैं अपनी राष्ट्र भाषा हिन्दी को
बहुत प्यार करती हूँ।
मैं जिस भाषा को सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ।
उसके लिए मैं अपने प्राण भी समर्पित करने से
कभी नहीं पीछे हटूँगी।
--
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।।
--
हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
(चित्र-नन्हे सुमन से साभार)


Tuesday, September 13, 2011

उड़ गई है नींद आँखों में

उड़ गई है नींद आँखों की हमारी
बस गई दिल में हमारे छवि तुम्हारी
छोड़ कर हमको अकेला यूँ न जाओ
जानेमन अब तो हमारे पास आओ

इन्तजारी के लम्हे कटते नहीं है
वक्त के घंटे जरा घटते नहीं है
देखती हूँ मैं खुली आँखों में सपने
अब नहीं दिल पर रहा अधिकार अपने

Monday, September 12, 2011

**** डर लगता है***

कितने हैं अरमान हृदय में,
मुझको लेकिन डर लगता है!
क्या तुम भी उन्मुक्त नहीं हो
क्या तुमको भी डर लगता है!!

मेरे साथ सदा यह होता
मेरा समय बहुत नाजुक है।
तुमसे मिलने को मनजाने
मेरा मन कितना उत्सुक है।।

कैसे कहूँ स्वयं अब मैं यह,
मतलब की है दुनिया सारी।
लेकिन प्यार अमर होता है,
जिससे चलती दुनियादारी।।

जहाँ चाह यहै वहाँ राह है,
अड़चन तो आती रहती हैं।
कोमल कलियाँ भी तो हँसकर
काँटों को सहती रहती हैं।।

Saturday, September 10, 2011

कुछ गाने मन को छू लेते हैं

कहे आप को कैसा लगा 
मै जितनी  बार  सुनती हूँ लगता है कम 
इतना अच्छा लगा 

Friday, September 9, 2011

बेवफा न कह देना


झाँक कर देखा इन झरोखों में
था  इन्तजार तेरी आँखों में

हमको तुम बेवफा न कह देना
बन्द अरमान हैं सलाखों में

चाहते हैं कि मिलें अजनबी से राही से
किन्तु रिश्तों की तरफ से हमें मनाही है

दिल के शोले बहुत भड़कते हैं
प्यार में हम बहुत तड़पते हैं

बस यही सोच के धीरज को नहीं खोते हैं
उसके घर देर है अन्धेर नहीं होते हैे

Monday, September 5, 2011

छुपा ले आसुओं में "




तेरी हर याद छिपा लेतें हैं।
दिल हर बात छिपा लेतें हैं।
हमको मिलते हैं प्यार में धोखे-
अपने ज़ज्बात छिपा लेते हैं।।

अपनी हर पीर छिपा लेते हैं।
नयन का नीर छिपा लेते है।
तेरी रुसवाई के डर से जानम-
तेरी तस्वीर  छिपा लेते हैं।।
इंतजार की घड़ियों को छिपा लेते हैं।
टूटी हुई लड़ियों को छिपा लेते हैं।
रोने का हक नहीं है हमको तो-
इसलिए वक्त की कड़ियों को छिपा लेते हैं।।

Sunday, September 4, 2011

जिसे करते है प्यार

जिसे करते है प्यार 
आँखों में आसूँ आ जाते हैं !
फिर भी लबो पे हँसी रखनी पड़ती  हैं !!
ये मोहब्बत भी क्या चीज हैं यारो !
जिससे करते हैं उसी से छुपानी पड़ती  हैं !!

जिसको अपना समझते हैं
उसी से धोखा खा जाते हैं ॥
किसी की याद में रोना
हो चला अब तो बेमानी है
हर एक  आँसू की होती 

कोई ना कोई कहानी है  ॥


Saturday, September 3, 2011

दर्द



प्यार करना कितना गुनाह है
हम ही उन्हें याद  करते हैं 
और  रोते हैं

वह तो बहुत हँसते रहते  है !
हम क्यों परेशान होते रहते है?

सोचती  हूँ  
कई  बार 
उन्हें याद न करूँ या न करूँ! 
मगर नहीं हो पाता है 
मुझ से यह,
क्या करू?


समझ नहीं पाती हूँ! 
रोती ही रह जाती हूँ!!

मन में उठते तूफान को,  
नहीं देख सकता कोई!
वह क्यों नहीं समझ पाता है
आँसुओं की भाषा को,  
क्यों भुला देता है 
मन की आशा को!
क्या करूँ???



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