Monday, September 12, 2011

**** डर लगता है***

कितने हैं अरमान हृदय में,
मुझको लेकिन डर लगता है!
क्या तुम भी उन्मुक्त नहीं हो
क्या तुमको भी डर लगता है!!

मेरे साथ सदा यह होता
मेरा समय बहुत नाजुक है।
तुमसे मिलने को मनजाने
मेरा मन कितना उत्सुक है।।

कैसे कहूँ स्वयं अब मैं यह,
मतलब की है दुनिया सारी।
लेकिन प्यार अमर होता है,
जिससे चलती दुनियादारी।।

जहाँ चाह यहै वहाँ राह है,
अड़चन तो आती रहती हैं।
कोमल कलियाँ भी तो हँसकर
काँटों को सहती रहती हैं।।

17 comments:

  1. सार्थक सोच लिए बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  2. जहाँ चाह यहै वहाँ राह है,
    अड़चन तो आती रहती हैं।
    कोमल कलियाँ भी तो हँसकर
    काँटों को सहती रहती हैं।।

    आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

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  3. सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
    देत बधाई प्रेम से, प्रस्तुति हो अविराम ||

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  4. कैसे कहूँ स्वयं अब मैं यह,
    मतलब की है दुनिया सारी।
    लेकिन प्यार अमर होता है,
    जिससे चलती दुनियादारी।।
    bilkul...

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति विद्या जी.
    आपके सुन्दर भाव मन को मोहते हैं.

    मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
    नई पोस्ट जारी की है.

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  6. आपका सुन्दर फोटो ओजपूर्ण है.

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  7. aaj pahle baar aapke blog par aai , and a like to say that i am happy to come at this place..

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  8. बेहतरीन प्रस्तुती....

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  9. Vidhya jee आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
    आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए...
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  10. सुन्दर रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति , आभार



    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें .

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  11. विद्या जी सार्थक सोच से परिपूर्ण बहुत सुन्दर भावभिव्यक्ति....

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  12. मोहब्बत का इज़हार करते जाओ ...जाने मन करीब आओ ...वाह क्या अंदाज़ हैं आपके ...http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/09/blog-post_13.हटमल
    अफवाह फैलाना नहीं है वकील का काम .

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  13. जहाँ चाह यहै वहाँ राह है,
    अड़चन तो आती रहती हैं।
    कोमल कलियाँ भी तो हँसकर
    काँटों को सहती रहती हैं।।जीवन के प्रति आस की विश्वास की रचना .
    ..http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/09/blog-post_13.हटमल
    अफवाह फैलाना नहीं है वकील का काम .

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  14. जहाँ चाह यहै वहाँ राह है,
    अड़चन तो आती रहती हैं।
    कोमल कलियाँ भी तो हँसकर
    काँटों को सहती रहती हैं।।

    वाह ...बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम ।

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  15. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  16. अरे वाह कितनी कोमल भावनाओं के साथ काटों को सहने की बात भी कह डाली आपने । सुंदर कविता के लिये बधाई ।

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  17. जहाँ चाह यहै वहाँ राह है,
    अड़चन तो आती रहती हैं।
    कोमल कलियाँ भी तो हँसकर
    काँटों को सहती रहती हैं।।
    yahi satya hai aur yahi jeevan hai...
    bahut sundar rachna...

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मैं अपने ब्लॉग पर आपका स्वागत करती हूँ! कृपया मेरी पोस्ट के बारे में अपने सुझावों से अवगत कराने की कृपा करें। आपकी आभारी रहूँगी।

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