Wednesday, September 28, 2011

संध्या पूजन का इतना महत्व क्यों है ?



trikal_sandhya_310धर्म की लगभग हरेक प्रसिद्ध पुस्तक में संध्या पूजन का विशेष महत्व बताया गया है। संध्या का शाब्दिक अर्थ संधि का समय है यानि जहां दिन का समापन और रात शुरू होती है, उसे संधिकाल कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार दिनमान को तीन भागों में बांटा गया है- प्रात:काल, मध्याह्नï और सायंकाल। संध्या पूजन के लिए प्रात:काल का समय सूर्योदय से छह घटी तक, मध्याह्न 12 घटी तक तथा सायंकाल 20 घटी तक जाना जाता है। एक घटी में 24 मिनट होते हैं। प्रात:काल में तारों के रहते हुए, मध्याह्नï में जब सूर्य मध्य में हो तथा सायं सूर्यास्त के पहले संध्या करना चाहिए।

संध्या पूजन क्यों?

-नियमपूर्वक संध्या करने से पापरहित होकर ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

-रात या दिन में जो विकर्म हो जाते हैं, वे त्रिकाल संध्या से नष्ट हो जाते हैं।

-संध्या नहीं करने वाला मृत्यु के बाद कुत्ते की योनि में जाता है।

-संध्या नहीं करने से पुण्यकर्म का फल नहीं मिलता।

-समय पर की गई संध्या इच्छानुसार फल देती है।-घर में संध्या वंदन से एक, गो

-स्थान में सौ, नदी किनारे लाख तथा शिव के समीप अनंत गुना फल मिलता है।

9 comments:

  1. बहुत सुन्दर जानकारी के लिए धन्यवाद|

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  2. बहुत जी उपयोगी पोस्ट लगाई है आपने नवरात्रों में!
    --
    संध्या शब्द सन्धि से मिला है और अऩ्धेरे व उजाले की सन्धि तो सुबह और शाम को होती है। इसलिए दोनों समय संध्या-वन्दन करना चाहिए।

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  3. माता रानी आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करें और अपनी भक्ति और शक्ति से आपके ह्रदय मे अपनी ज्योति जगायें…………सबके लिये नवरात्रि शुभ हों

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  4. बहुत उपयोगी और सार्थक जानकारी ..

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  5. सुन्दर प्रस्तुति ||
    माँ की कृपा बनी रहे ||

    http://dcgpthravikar.blogspot.com/2011/09/blog-post_26.html

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  6. सुन्दर जानकारी के लिए धन्यवाद
    नवरात्रि पर्व की मंगलकामनाएँ!

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  7. बहुत ही बढ़िया और महत्वपूर्ण जानकारी मिली!
    आपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  8. बहुत ही अच्‍छी जानकारी दी है आपने ...आभार ।

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