बरखा रानी ,तुम झूम -झूम कर बरसो , धरती की तन पर सुधा बरसाओ ।
धरती आज
धरती आज
बनी है दुल्हन ,
तुम उसे अपनी जल से नहलाओ ।
मोतियों की बरसा करके , उस की तुम श्रृंगार कर दो ।
दूर गगन में , दामिनी चमकी ,
जैसे लाखों दीये जले हों ।
बादलों की गडगडाहट ,
जैसे नगाडे बज रहे हो
बरखा जैसे ही आती है ,
धरती निखर जाती है ।
आओ आओ बरखा रानी ,
झूम झूम कर बरसो ।
तुम उसे अपनी जल से नहलाओ ।
मोतियों की बरसा करके , उस की तुम श्रृंगार कर दो ।
दूर गगन में , दामिनी चमकी ,
जैसे लाखों दीये जले हों ।
बादलों की गडगडाहट ,
जैसे नगाडे बज रहे हो
बरखा जैसे ही आती है ,
धरती निखर जाती है ।
आओ आओ बरखा रानी ,
झूम झूम कर बरसो ।
very nice....
ReplyDeleteवर्षा का बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने अपनी आज की पोस्ट में!
ReplyDeleteबहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
सुन्दर चित्रण्।
ReplyDeletebahut achha...barish aa gayi aapake bulaane par..wah!!!
ReplyDeleteहमारे यहाँ तो खूब बरस रही है .....!
ReplyDeleteहमारे यहाँ तो खूब बरस रही है
ReplyDeleteफुहारों से सराबोर
ReplyDeleteफुहारमयी रचना बहुत ही सुदर लगी।
ReplyDeleteमन भीग गया इन शब्दों की बारिश से क्या लाजवाब चित्रण हैं
ReplyDeleteवाह
कई जिस्म और एक आह!!!
barsaat me is geet ne aur char chaand laga diye.
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या
ReplyDeleteनीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
चलो मेरा लिखा मत पढ़ो,
पोस्ट आपका इंतजार कर रहीं हैं
सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteshandar badhayee aur apne blog pe amantran ke sath
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