Tuesday, August 9, 2011

बरखा रानी ,तुम झूम -झूम कर बरसो ,

बरखा रानी ,तुम झूम -झूम कर बरसो , धरती की तन पर सुधा बरसाओ ।
धरती आज
 बनी है दुल्हन ,
तुम उसे अपनी जल से नहलाओ ।
मोतियों की बरसा करके ,
उस की तुम श्रृंगार कर दो ।
दूर गगन में , दामिनी चमकी ,
जैसे लाखों दीये जले हों ।
बादलों की गडगडाहट ,
जैसे नगाडे बज रहे हो
बरखा जैसे ही आती है ,
धरती निखर जाती है ।

आओ आओ बरखा रानी ,
झूम झूम कर बरसो ।

13 comments:

  1. वर्षा का बहुत सुन्दर वर्णन किया है आपने अपनी आज की पोस्ट में!
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  2. सुन्दर चित्रण्।

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  3. bahut achha...barish aa gayi aapake bulaane par..wah!!!

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  4. हमारे यहाँ तो खूब बरस रही है .....!

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  5. हमारे यहाँ तो खूब बरस रही है

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  6. फुहारमयी रचना बहुत ही सुदर लगी।

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  7. मन भीग गया इन शब्दों की बारिश से क्या लाजवाब चित्रण हैं
    वाह



    कई जिस्म और एक आह!!!

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  8. barsaat me is geet ne aur char chaand laga diye.

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  9. बहुत ही बढि़या

    नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
    चलो मेरा लिखा मत पढ़ो,


    पोस्ट आपका इंतजार कर रहीं हैं

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  10. सुन्दर रचना , बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

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  11. shandar badhayee aur apne blog pe amantran ke sath

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मैं अपने ब्लॉग पर आपका स्वागत करती हूँ! कृपया मेरी पोस्ट के बारे में अपने सुझावों से अवगत कराने की कृपा करें। आपकी आभारी रहूँगी।

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