हाय ! ऐसी मोहब्बत
इस भरी दोपहरी में, क्यूँ शमा जलाए बैठी हो |
किसका इंतजार है , जो द्वार खोले बैठी हो||
ये कैसी तलब है, जो पलके बिछाए बैठी हो|
ये कैसी तन्हाई है, जो बेचैन हुए बैठी हो||
निकला पतझड सावन, निकला बसंत-बहार |
किसका इंतजार है, जो आस लगाए बैठी हो ||
कैसे कैसे राज़ जो ख़ामोशी ने छिपायें रखे है |
हाय ! ऐसी मोहब्बत जो परदेसी से कर बैठी हो ||
किसका इंतजार है , जो द्वार खोले बैठी हो||
ये कैसी तलब है, जो पलके बिछाए बैठी हो|
ये कैसी तन्हाई है, जो बेचैन हुए बैठी हो||
निकला पतझड सावन, निकला बसंत-बहार |
किसका इंतजार है, जो आस लगाए बैठी हो ||
कैसे कैसे राज़ जो ख़ामोशी ने छिपायें रखे है |
हाय ! ऐसी मोहब्बत जो परदेसी से कर बैठी हो ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...बधाई
ReplyDeleteबहुत खूब.,...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर्।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteलगता है कि ये आपके दिल की आवाज है!
और हो भी क्यों नहीं?
बरसात का मौसम है न!
Bahut sundar abhiwyakti...aabhar
ReplyDeletebhaut bhaut hi sunder...
ReplyDeletepardeshi aakhir pardeshi hi hote hain bahut intjaar karate hain.bahut achchi kavita likhi hai.badhaai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
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