Thursday, August 18, 2011

तू क्यों पूरब में उगता है? तू क्यों पश्चिम में डूबता है?


तू क्यों पूरब में उगता है? 

तू क्यों पश्चिम में डूबता है? 
क्या है मजबूरी तेरी 
जो इस बंधन में रहता है? 

तू जग को जीवन देता है 
तू जग को किरणें देता है 
तू जग को आशा देता है 
तू जग को कर्म सिखलाता है 


क्या ये तेरी मजबूरी है 
जो बिना थके बिना रुके 
सदियों से चमक रहा गगन में? 
या भुगत रहा है कोई अभिशाप? 



अगर ये है तेरी सच्ची सेवा 
तो तू क्यों नहीं यह मानव को सिखलाता है? 

14 comments:

  1. क्या ये तेरी मजबूरी है
    जो बिना थके बिना रुके
    सदियों से चमक रहा गगन में?
    या भुगत रहा है कोई अभिशाप?

    बहुत बढ़िया ।
    कविता बहुत अच्छी लगी।

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  2. चन्दा को लेकर बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है आपने!
    --
    लिखती रहिए! शुभ आशीर्वाद!

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  3. बहुत सुन्दर संदेश देती सार्थक कविता।

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  4. अगर आपको जवाब मिल जाये तो जरुर बता देना हमको भी।

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  5. संवेदना का प्रवाह मानवता के लिए कितना विह्वल है ,इस रचना से पता चलता है ,जो एक पाक दिल का सम्मोहन बनता है , बहुत -२ आभार /

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  6. विद्या जी आपकी कविता बहुत सार्थक सन्देश और प्रश्नवाचक लिए हुए है .बहुत अच्छी लगी आपकी ब्लोगिया दस्तक .....http://veerubhai1947.blogspot.com/http://veerubhai1947.blogspot.com/
    मंगलवार, १६ अगस्त २०११
    पन्द्रह मिनिट कसरत करने से भी सेहत की बंद खिड़की खुल जाती है .
    Thursday, August 18, 2011
    Will you have a heart attack?
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  7. अच्छा लिखा है...पर मानव सीख ले तो संसार खत्म न हो जाए...मुश्किल इतनी ही है कि अधिकांश दुनिया सीखने को तैयार नहीं....

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  8. vidya ji
    bahut hi sahjta ke saath aapne apni kavita dwara ek bahut hi achha sandesh diya hai.
    bahut hi prabhav-purn rachna
    bahut bahut badhai
    poonam

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  9. बहुत ही सार्थक प्रश्न और तुलना की आपने /बहुत ही ज्ञानवर्धक सन्देश देती हुई बेमिसाल रचना /बधाई आपको /

    please visit my blog.
    http://prernaargal.blogspot.com/thanks/

    ReplyDelete

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