चल पड़ा जब से मिलन का ये सिला,अब तो कोई भी शिकायत न गिला।वो तो उल्फत में बेवफा निकले,प्यार में दर्द मिला, कुछ न मिला।।
उठते ज़ज्बात में सच्चाई बहुत कम होती,बहते दरिया में तो गहराई बहुत कम होती।
बेवफा लहरें हमेशा ही किनारों से दूर जाती हैं,जिन्दगी यूँ ही सिसकती है, उम्र भर रोती।।
याद उनकी न हमारे जिगर से जाती है,
किन्तु उनको तो मेरी याद नहीं आती है।
जिनका दिल था कभी नाजुक फूलों जैसा,
चोट पहुँचा रहा पत्थर की तरह साथी है।।
उठते ज़ज्बात में सच्चाई बहुत कम होती,
ReplyDeleteबहते दरिया में तो गहराई बहुत कम होती।सच कहा आपने -"स्टिल वाटर रन्स डीप"...... ,इस दौर में आपका संग साथ ही अन्ना जी की ताकत है .ऊर्जा और आंच दीजिए इस मूक क्रान्ति को .बेहतरीन जानकारी दी है आपने बहुत अच्छी पोस्ट . जय ,जय अन्ना जी ,जय भारत .
सद-उद्देश्यों के लिए, लड़ा रहे वे जान |
कद - काठी से शास्त्री, धोती - कुरता श्वेत |
बापू जैसी सादगी, दृढ़ता सत्य समेत ||
ram ram bhai
सोमवार, २२ अगस्त २०११
अन्ना जी की सेहत खतरनाक रुख ले रही है . /
http://veerubhai1947.blogspot.com/
.
.आभार .....इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार ./ http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com
बेहतरीन
ReplyDelete"चल पड़ा जब से मिलन का ये सिला,
अब तो कोई भी शिकायत न गिला।"मतला है.और तमाम अशआर भी : उठते ज़ज्बात में सच्चाई बहुत कम होती,
बहते दरिया में तो गहराई बहुत कम होती।सच कहा आपने -"स्टिल वाटर रन्स डीप"...... ,इस दौर में आपका संग साथ ही अन्ना जी की ताकत है .ऊर्जा और आंच दीजिए इस मूक क्रान्ति को .बेहतरीन जानकारी दी है आपने बहुत अच्छी पोस्ट . जय ,जय अन्ना जी ,जय भारत .
सद-उद्देश्यों के लिए, लड़ा रहे वे जान |
कद - काठी से शास्त्री, धोती - कुरता श्वेत |
बापू जैसी सादगी, दृढ़ता सत्य समेत ||
ram ram bhai
सोमवार, २२ अगस्त २०११
अन्ना जी की सेहत खतरनाक रुख ले रही है . /
http://veerubhai1947.blogspot.com/
.
.आभार .....इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार ./ http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com
Tuesday, August 23, 2011
इफ्तियार पार्टी का पुण्य लूटना चाहती है रक्त रंगी सरकार .
जिस व्यक्ति ने आजीवन उतना ही अन्न -वस्त्र ग्रहण किया है जितना की शरीर को चलाये रखने के लिए ज़रूरी है उसकी चर्बी पिघलाने के हालात पैदा कर दिए हैं इस "कथित नरेगा चलाने वाली खून चुस्सू सरकार" ने जो गरीब किसानों की उपजाऊ ज़मीन छीनकर "सेज "बिछ्वाती है अमीरों की ,और ऐसी भ्रष्ट व्यवस्था जिसने खड़ी कर ली है जो गरीबों का शोषण करके चर्बी चढ़ाए हुए है .वही चर्बी -नुमा सरकार अब हमारे ही मुसलमान भाइयों को इफ्तियार पार्टी देकर ,इफ्तियार का पुण्य भी लूटना चाहती है ।
अब यह सोचना हमारे मुस्लिम भाइयों को है वह इस पार्टी को क़ुबूल करें या रद्द करें .उन्हें इस विषय पर विचार ज़रूर करना चाहिए .भारत देश का वह एक महत्वपूर्ण अंग हैं ,वाइटल ओर्गेंन हैं .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com//......
गर्भावस्था और धुम्रपान! (Smoking in pregnancy linked to serious birth defects)
Posted by veerubhai on Sunday, August 21
२३ अगस्त २०११ १:३६ अपराह्न
khoobsoorat!
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत रचना ....
ReplyDeleteयाद उनकी न हमारे जिगर से जाती है,
ReplyDeleteकिन्तु उनको तो मेरी याद नहीं आती है।
जिनका दिल था कभी नाजुक फूलों जैसा,
चोट पहुँचा रहा पत्थर की तरह साथी है।
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति बधाई
bahut sundar rachana...aabhar
ReplyDeleteविद्या जी आपने तीनों मुक्तक बहुत बढ़िया लिखे हैं।
ReplyDeleteबहुत गहराई और शिक्षा छिपी है इनमें!
बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! बधाई!
ReplyDeleteबहुत ही गहरे जज़्बात संजोये हैं।
ReplyDeleteवो तो उल्फत में बेवफा निकले,
ReplyDeleteप्यार में दर्द मिला, कुछ न मिला।।
what can we do, between two
its a matter of love ,
how do you do .
excuse me ......../
its a better one theme .... / thanks ji
देश के कार्य में अति व्यस्त होने के कारण एक लम्बे अंतराल के बाद आप के ब्लाग पे आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना!
जिनका दिल था कभी नाजुक फूलों जैसा,
ReplyDeleteचोट पहुँचा रहा पत्थर की तरह साथी है।
उफ़, ऐसा साथी.
ख़ूबसूरत रचना | बहत बढ़िया विद्या जी | आभार |
ReplyDeleteकृपया मेरी रचना देखें |
सुनो ऐ सरकार !!
और इस नए ब्लॉग पे भी आयें और फोलो करें |
काव्य का संसार
बेहतरीन मुक्तक...
ReplyDeleteसादर बधाई...