तैरता था मेरे चारो और सन्नाटा अकेलेपन का
बाँट नही पाता था मै दर्द अपने मन का
सूनी आँखे मेरी कुछ ढूंडती थी शून्य मे
दूर तक पसरा उदास आसमान
और धरा पर विखहरी पीली जर्द चाँदनी
मेरे मन की पीड़ा को और बढ़ाती थी
तभी मन के उदास बादलो के बीच
एक चमकी बिजली
और कर गयी मेरे मन की धरा को प्रकाशित
मेरे हृदया की वीणा के तारो को झंकृत
और तब मेरे तपते मन पर, रिमझिम बरसात हो गयी
मेरी सूनी सी आँखे खुशियो से भर गयी
और मै ब्लॉग की दुनिया मे मशरूफ हो गया
जो मेरा अब एक अलग ही संसार � सब कुछ था
सूनी आँखे मेरी कुछ ढूंडती थी शून्य मे
दूर तक पसरा उदास आसमान
और धरा पर विखहरी पीली जर्द चाँदनी
मेरे मन की पीड़ा को और बढ़ाती थी
तभी मन के उदास बादलो के बीच
एक चमकी बिजली
और कर गयी मेरे मन की धरा को प्रकाशित
मेरे हृदया की वीणा के तारो को झंकृत
और तब मेरे तपते मन पर, रिमझिम बरसात हो गयी
मेरी सूनी सी आँखे खुशियो से भर गयी
और मै ब्लॉग की दुनिया मे मशरूफ हो गया
जो मेरा अब एक अलग ही संसार � सब कुछ था
वाह क्या कहने ||
ReplyDeleteब्लॉग पुरानी पैरासिटामाल हो गई ||
दर्दे-दिल की दवा, बेमिसाल हो गई |
पर नई रिसर्च से हो जा सावधान --
कईयों के लिए ये तो काल हो गई ||
प्रस्तुति के लिए बधाई विद्या
सुन्दर एवं प्रभावी प्रस्तुति|
ReplyDeleteसुंदर...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया.
ReplyDeleteसादर
और मै ब्लॉग की दुनिया मे मशरूफ हो गया
ReplyDeleteक्या बात कही विद्या जी ये तो आज सभी ब्लोग्गर्स का सच है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
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