Sunday, July 17, 2011

ब्लॉग की दुनिया

तैरता था मेरे चारो और सन्नाटा अकेलेपन का

बाँट नही पाता था मै दर्द अपने मन का 
सूनी आँखे मेरी कुछ ढूंडती थी शून्य मे 
दूर तक पसरा उदास आसमान 
और धरा पर विखहरी पीली जर्द चाँदनी 
मेरे मन की पीड़ा को और बढ़ाती थी 
तभी मन के उदास बादलो के बीच 
एक चमकी बिजली 
और कर गयी मेरे मन की धरा को प्रकाशित 
मेरे हृदया की वीणा के तारो को झंकृत 
और तब मेरे तपते मन पर, रिमझिम बरसात हो गयी 
मेरी सूनी सी आँखे खुशियो से भर गयी 

और मै ब्लॉग की दुनिया मे मशरूफ हो गया 
जो मेरा अब एक अलग ही संसार � सब कुछ था 

6 comments:

  1. वाह क्या कहने ||

    ब्लॉग पुरानी पैरासिटामाल हो गई ||
    दर्दे-दिल की दवा, बेमिसाल हो गई |
    पर नई रिसर्च से हो जा सावधान --
    कईयों के लिए ये तो काल हो गई ||

    प्रस्तुति के लिए बधाई विद्या

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  2. सुन्दर एवं प्रभावी प्रस्तुति|

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  3. बहुत बढ़िया.


    सादर

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  4. और मै ब्लॉग की दुनिया मे मशरूफ हो गया
    क्या बात कही विद्या जी ये तो आज सभी ब्लोग्गर्स का सच है

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

    ReplyDelete

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