Friday, July 15, 2011

" चाँद"

ऐसे दिख रही है ज़िन्दगी
कविता में
जैसे चाँद पर से
दिखती धरती
हेलीकॉप्टर से दिखती
चढ़ी हुई नदी और बाढ़


उतनी दूर नहीं
पर जितनी साफ़ उजली बेपर्द
बिल्कुल नंगी उद्विग्न
साबुत और तार-तार


घुटनों तक धँसी आत्मा
लिथड़ी है कीचड़ में
चाँद पर सुनाई पड़ रही
धरती की चीख़-पुकार...

आप की ईच्छ्ये बाटिये 

17 comments:

  1. बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई !

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  2. जिंदगी को चाँद और
    और चाँद को जिंदगी ||
    कीचड़ यानी परेशानी --
    कैसे सोचते हैं इतनी बारीक़ बातें |
    बधाई ||

    बम-विस्फोट
    रेल की टक्कर
    बाढ़ की विभीषिका
    सब कुछ
    चाँद से --

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  3. वाह शब्दों का चयन सुंदर हैं । शुभकामनाएं , लिकह्ती रहिए , और हां हम भी अब अनुसरक हैं इस ब्लॉग के

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  4. उफ़ ………।गज़ब का लिखा है।

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  5. चांद पर एक बेहतरीन कविता. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया, आपका लेखन अच्छा लगा. थोड़ा आप proof reading अवश्य कीजिये. बस!
    शेष फिर. अनेकानेक शुभकामनायें.

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ।

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  7. गहरे अर्थ और बिम्बों वाली कविता

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  8. अभिव्यक्ति की सांद्रता रचना और ग़ज़ल में एक रिदम बनाए चलती है .कोई दूरी नहीं दोनों में -चाँद पे बस्ती बन गई तो बच्चा कैसे कहेगा -मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लूंगा ..शुक्रिया विद्या जी आप ब्लॉग पर आई .

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मैं अपने ब्लॉग पर आपका स्वागत करती हूँ! कृपया मेरी पोस्ट के बारे में अपने सुझावों से अवगत कराने की कृपा करें। आपकी आभारी रहूँगी।

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