Thursday, July 7, 2011

- मुंशी प्रेमचंद की कहानी -


घर वाले बिगड़ रहे हैं, पिता जी चौके पर बैठे वेग से रोटियों पर अपना क्रोध उतार रहे हैं, अम्मा की दौड़ केवल द्वार तक है, लेकिन उनकी विचारधारा में मेरा अंधकारमय भविष्य टूटी हुई नौका की तरह डगमगा रहा है; और मैं हूँ कि पदाने में मस्त हूँ। न नहाने की सुध है, न खाने की। गुल्ली है तो जरा-सी, पर उसमें दुनिया-भर की मिठाइयों की मिठास और तमाशों का आनंद भरा हुआ है।

मेरे हमजोलियों में एक लड़का गया नाम का था। मुझसे दो-तीन साल बड़ा होगा। दुबला-पतला बंदरों की-सी लंबी-लंबी, पतली-पतली उँगलियाँ, बंदरों ही की-सी चपलता, झल्लाहट। गुल्ली कैसी ही हो, उस पर इस तरह लपकता था, जैसे छिपकली कीड़ों पर लपकती है। मालूम नहीं उसके माँ-बाप थे या नहीं, कहाँ रहता था, क्या खाता था, पर था हमारे गुल्ली क्लब का चैंपियन। जिसकी तरफ वह आ जाए, उसकी जीत निश्चित ही थी। 

हम सब उसे दूर से आते देख उसका दौड़कर स्वागत करते थे और उसे अपना गोइयाँ बना लेते थे। 

एक दिन हम और गया दोनों ही खेल रहे थे। वह पदा रहा था, मैं पद रहा था; मगर कुछ विचित्र बात है कि पदाने में हम दिन-भर मस्त रह सकते हैं, पदना एक मिनट का अखरता है। मैंने गला छुड़ाने के लिए सब चालें चलीं, जो ऐसे अवसर पर शास्त्रविहीन न होने पर भी क्षम्य हैं, लेकिन गया अपना दाँव लिए बगैर मेरा पिंड न छोड़ता था। 

मैं घर की ओर भागा। अनुनय-विनय का कोई असर न हुआ। गया ने मुझे दौड़कर पकड़ लिया और डंडा तानकर बोला-मेरा दाँव देकर जाओ। पदाया तो बड़े बहादुर बनके, पदने के बेर क्यों भागे जाते हो?

$आप का प्यार हमेसा मेरे साथ $

4 comments:

  1. आप का प्यार हमेसा मेरे साथ//nice

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  2. आपका हिंदी ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  3. कहानी का शीर्षक ...दो बैलों की आत्मकथा .. पर कहानी कोई और है ..ऐसा क्यों ?

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